Thursday, October 15, 2020

Sudeep Singh :"आजादी के 73 साल बाद भी सिक्खों के साथ सौतेला व्यवहार जारी"

                                          सुदीप सिंह


देश को आजाद हुए आज 73 वर्ष हो चुके हैं। कहने को तो देश को अंग्रेजों से 1947 में मुक्ति मिल गई थी और देश आजाद हो गया था। पर शायद आज़ादी की लड़ाई में सबसे अधिक योगदान देने वाली कौम आज भी आज़ाद नहीं है। आजादी में सबसे ज्यादा नुकसान पंजाबियों खास तौर पर सिक्खों का हुआ था। अंग्रेजों ने सिक्खों के नेताओं से पूछा था कि क्या वह भी मुस्लिम समुदाय की तरह अलग देश चाहते हैं लेकिन उस समय सिक्ख नेताओं ने भारत के साथ रहने की अपनी प्रतिबधता दोहराई थी। इस आजादी के दौरान अरबों रूपये के धन माल की जायदाद को छोड़ कर पंजाबियों को भारत आना पड़ा। लाखों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। हजारों की गिनती में परिवार के लोग आपस में बिछड़ गये। इस बंटवारे की कसक अभी भी लोगों के दिलों में देखी जा सकती है। 

आजादी के बाद जब सिखों के नेताओं ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से पंजाबियों के हकों के लिए मुलाकात की तो उनके तेवर बदले हुए थे और उनका जवाब था कि उस समय वक्त और था अब वक्त और है। सिक्खों को उनकी देशभक्ति का इनाम देने के बजाये उस समय के गृहमंत्री ने सिक्खों के विरूद्ध यह ब्यान जारी किया कि सिक्ख एक जराम पेशा (अपराधी प्रवृत्ति) की कौम है। सिक्खों ने गृहमंत्री के उस ब्यान का सख्त विरोध किया और उसकी भरपूर निंदा की। तब से लेकर आज तक सिक्खों के साथ देश में कहीं ना कहीं सौतेले व्यवहार की खबरें आती रहती हैं। कहने को तो देश के संविधान में सभी धर्मों के लोगों को बराबर के अधिकार दिये गये हैं। लेकिन कहीं ना कहीं आज भी सिक्खों के मूल अधिकारों का हनन लगातार जारी है। 

केन्द्र में किसी भी पार्टी की सरकार रही हो उसके द्वारा सबसे पहले सिक्खों के अधिकारों को कुचलने की नीतियाँ बनाई जाती हैं। इतिहास इस बात का गवाह है कि सिक्ख समुदाय के लोगों को अपने हकों के लिए लगातार आंदोलन करने पड़ते रहे हैं। जब भाषा के आधार पर प्रदेश बनने की बात आई तो भी पंजाब के लोगों को इसके लिए आंदोलन करना पड़ा। आखिर में केन्द्र सिक्खों की माँगों के आगे तो झुक गया लेकिन उसने पंजाब के कई टुकड़े कर दिये और हिमाचल तथा हरियाणा प्रदेश बनाकर भाषा के आधार पर एक लंगड़ा प्रदेश पंजाब के लोगों को दे दिया। 

आज 21वीं सदी में सिक्खों के साथ दूसरे दर्जे का व्यवहार लगातार जारी है। देश के किसी ना किसी हिस्से में कभी सिक्खों की दस्तार के साथ बदसलूकी की जाती है तो कभी भाषा के आधार पर उनको पीछे धकेला जाता है। सिक्खों द्वारा लगातार अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की जाती रही है। इसकी ताजा मिसाल ये है कि केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में से पंजाबी भाषा को सरकारी दर्जे से बाहर कर दिया। जबकि प्रदेश में पंजाबी बोलने व पढने वाले लोग हजारों की संख्या में रहते हैं। इसी तरह से हिमाचल प्रदेश में पंजाबियों द्वारा लगातार पंजाबी भाषा को प्रदेश में दूसरे दर्जे के लिए आवाज उठाई जाती रही है। लेकिन केन्द्र सरकार के कानों पर जूं तक नहीं सरक रही। 

चीन के साथ युद्ध हो या पाकिस्तान के साथ युद्ध हो सिख अपनी बहादुरी के जज्बे से पीछे नहीं हटे। हँसते हुए अपनी जान देश के ऊपर वार दी। गिलगिट घाटी में जिस तरह से चीनी फौजियों द्वारा रात के अंधेरे में  भारतीय फौज पर हमला किया गया तो उस समय भी निहत्थे सिक्ख फौजी नौजवानों ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए दुश्मन को धूल  चटा दी  और देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। लेकिन जब पंजाबियों खास तौर पर सिक्खों को कुछ देने की बात आती है तो सरकारें अपनी आँखें बंद कर लेती है। 

रही सही कसर केन्द्र सरकार ने कृषि बिल को संसद में पास करके पंजाब के किसानों को जीते जी मरने की कगार पर ला दिया। कृषि बिल के विरूद्ध आज पूरे पंजाब में लगातार धरने-प्रर्दशन जारी हैं। केन्द्र की मोदी सरकार को आम लोगों की सरकार ना मानकर बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों की सरकार कहा जाने लगा है। 

पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा जिस तरह से एक सिख की दस्तार उतारी गई और उसके केसों की बेअदबी की गई इस घटना ने संसार भर के सिखों के हृदयों को ठेस पहुंचाई। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा द्वारा वहां के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को ज्ञापन सौंप बलविन्दर सिंह को इन्साफ दिलाने की गुहार लगाई। वहीं इस घटना को अब राजसी रंगत दे दी गई है। भाजपा बलविन्दर सिंह के बलबूते पर ममता को घेरना चाहती है इसी के चलते भाजपा समर्थित सिख देशभर में प्रदर्शन कर ममता सरकार को जी भर कर कोस रहे हैं। सिख बुद्धिजीवियों की मानें तो ममता सरकार को इस घटना के लिए माफी मांगनी चाहिए और दोषी अफसरों पर कार्रवाई करनी चाहिए पर साथ ही भाजपा के चहेते सिखों को भी चाहिए कि सिख की दस्तार जब उनके आकाओं की रहनुमाई में उतरती है तब भी इसी तरह डटकर सामने आयें और उनके खिलाफ भी इसी तरह से मुहिम चलायें। आज हर कोई सिक्ख यह सोचने पर मजबूर हो गया है कि देश की आजादी के बाद भी उसके साथ लगातार सौतेला व्यवहार जारी है।

Article by,
Mr.Sudeep Singh
Honoraray Media Advisor
DSGMC

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