Thursday, August 27, 2020

Sudeep Singh's Article:पंजाबियों की अनदेखी क़ेजरीवाल को पड़ सकती है भारी

          
                             Sudeep Singh

1947 के भारत पाकिस्तान के बंटवारें उपरांत लाखों लोगों को घर-बेघर होना पड़ा था। भारत आने वाले ज्यादातर लोगों ने दिल्ली में आकर अपना डेरा डाला था। इन लोगों में बहुसंख्या में पंजाबी लोग शामिल थे। क्योंकि बंटवारा देश के साथ-साथ पंजाब का हुआ था। दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों में यह लोग बहुगिनती में रहते हैं। सबसे बड़ी बात इन पंजाबियों के नाम पर तो कई जगह का नाम भी कालोनियों के नाम पर रख दिया गया। इन लोगों ने अपनी मेहनत और लगन से दिल्ली में एक मुकाम हासिल किया। दिल्ली की राजनीति में किसी समय पंजाबियों का डंका बजा करता था। चाहें कांग्रेस की सरकार हो या भाजपा की सरकार हो। पंजाबियों की तूती बोलती थी पंजाबियों की बहुगिनती को देखते हुए 2004 में दिल्ली में पंजाबी भाषा को दूसरा दर्जा दिया गया। सरकारी ऐलान होते ही दिल्ली में पंजाबियों ने खुशी मनाई पर जब से भाजपा ने पंजाबियों को नज़रअंदाज़ किया भाजपा दिल्ली हाशय पर चली गई। तब से लेकर आज तक भाजपा दिल्ली में सरकार नहीं बना पाई है। भाजपा हाईकमान शायद अभी भी समझ नहीं सका कि उसे दिल्ली के पंजाबियों की नब्ज़ पहचाननी होगी और उन्हें पार्टी में बनता मान सम्मान देकर शीर्ष पदों पद पंजाबियों की नियुक्ति करनी होगी। आम आदमी पार्टी से लोगों को काफी उम्मीदें थीं पर वह भी पंजाबियों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी। पंजाबियो का भाजपा से मोहभंग होने के कारण ही केजरीवाल की पार्टी को 70 में से 67 सीट मिलीं पर सत्ता में आते ही पंजाबियों को नज़रअंदाज़ करना शुरु कर दिया गया। 4 विधायक सिख आने के बावजूद भी किसी सिख या पंजाबी को मंत्री पद नहीं दिया गया।
केन्द्र सरकार की तरह दिल्ली सरकार ने भी पंजाबियों के साथ पूरा इंसाफ नहीं किया। पंजाबी को दूसरी भाषा का दर्जा तो दे दिया। लेकिन उसको अमली रूप आज तक नहीं दिया। इसके पीछे क्या कारण है या तो पार्टियां नहीं चाहतीं या फिर सरकारों को चलाने वाले ब्यूरोक्रेटस जो कि ज्यादातर गैर पंजाबी हैं उनकी मंशा पंजाबियों को पीछे करने की रही है। पंजाबी को पटरानी का दर्जा नहीं मिल सका। दिल्ली सरकार के ऐलान के बावजूद भी स्कूलों में छात्रों को पंजाबी भाषा पढने की सहूलियत नहीं दी गई। सरकारी दफ्तरों में पंजाबी की पोस्ट नहीं निकाली जा रही है। अगर बात की जाये तो मौजूदा दिल्ली सरकार के मुखिया श्री अरविंद केजरीवाल की तो वह भी पूर्व की सरकारों की तरह ही पंजाबी भाषा के साथ सौतेला व्यवहार करते हुए नजर आ रहे हैं। विरोधी दलों द्वारा उनके ऊपर पंजाबी और सिक्ख विरोधी होने की जो छाप लगाई जा रही है। वह कहीं ना कहीं सच साबित हो रही है। अभी-अभी दिल्ली में आम आदमी पार्टी में जिला स्तर पर जितनी भी निुयक्तियाँ की गईं उनमें भी सिक्खों या यूं कहा जाए कि पंजाबियों की नुमाईंदगी शून्य मात्र है। ऊपर से केजरीवाल सभी धर्मों के लोगों को अपने साथ लेकर चलने का डंका पीटते रहते हैं पर वह छलावा मात्र है।
कोरोना काल में जब सब कुछ आनलाईन हो रहा है। दिल्ली सरकार अपने अंर्तगत चलाये जाने वाले स्कूलों के छात्रों को भी आनलाईन शिक्षा दे रही है। दिल्ली के शिक्षा मंत्री श्री मनीष शिषोदिया तो हर बात में अपनी पीठ थपथपाते हुए नजर आते हैं कि वह दिल्ली के स्कूली छात्रों को बहुत अच्छे ढंग से पढ़ाई करवा रहे हैं। लेकिन दूसरी तरफ उन्हीं के अधिकारी सभी विषयों में पंजाबी भाषा को शामिल ही नहीं करते। आज तक दिल्ली के सरकारी स्कूलों में कक्षा छठी से लेकर बारहवीं तक ना तो पंजाबी भाषा की कक्षाएं लगाई जा रही हैं और ना ही इन छात्रों को कोई वर्कशीट दी जा रही है। स्कूलों में पढ़ाने वाले पंजाबी अध्यापक अपने स्तर पर छात्रों को वर्कशीट दे रहे हैं। लेकिन दिल्ली का शिक्षा विभाग पंजाबी भाषा के लिए कुंभकर्णी नींद सोया पड़ा है। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने इस मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठाया है ओर कमेटी की वरिष्ठ उपाध्यक्षा बीबी रणजीत कौर ने इस बाबत दिल्ली के मुख्यमंत्री, शिक्षामंत्री व गर्वनर को पत्र लिखकर माँग की है कि इन स्कूलों में पंजाबी भाषा पढने वाले छात्रों के लिए कक्षाएँ लगाई जायें। राजनीतिक माहिरों की मानें तो अरविंद केजरीवाल व पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को अगर पंजाब फतेह करना है तो उसे पंजाबियों को उनके बनते हक देकर यह विश्वास पंजाब की जनता को दिलाना होगा कि आम आदमी पार्टी पंजाबी विरोधी नहीं है।

Sudeep Singh
Honorary Media Advisor
DSGMC 

No comments: