Saturday, September 26, 2020

Sudeep Singh's Article :अकाली-भाजपा गठबंधन पर मंडरा रहे हैं खतरे के बादल


 

भारतीय गणतंत्र में सभी पार्टियों को एक समान अधिकार दिये गये हैं। यहाँ पर जाति, रंग, नस्ल के आधार पर किसी के भेद-भाव नहीं किया जा सकता। संविधान में सभी को बराबरी का हक मिला हुआ है। देश में किसी समय एक ही पार्टी का वर्चस्व हुआ करता था। लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता क्षेत्रीय पार्टियों को भी केन्द्र के अंदर हिस्सेदारी मिलने लगी। इसका नतीजा यह हुआ कि केन्द्र में किसी भी पार्टी की सरकार बिना क्षेत्रीय पार्टियों की बैसाखी का साहार लिये नहीं बनती। केन्द्र के अंदर ज्यादातर समय कांग्रेस सरकार का दबदबा रहा। विपक्षी पार्टियों को भी वहाँ पर सरकार बनाने का मौका मिला। लेकिन बहुत कम समय ऐसा आया जब क्षेत्रीय पार्टियों के सहारे बनने वाली केन्द्र की सरकारों ने अपना समय सफलता के साथ पूरा किया हुआ हो।

आज जब हम 21वीं सदी से गुजर रहे हैं। देश के क्या विदेशों में भी अब किसी भी पार्टी का एकाधिकार खत्म होता हुआ नजर आ रहा है। ऐसे समय में भारत के अंदर किसी एक पार्टी के वर्चस्व का हमेशा के लिए बने रहना अपने आप में प्रश्न खड़ा करता हुआ नजर आता है।

मौजूदा समय में केन्द्र के अंदर भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ लोकसभा के अंदर चुनकर आई हुई है। इसलिए यहाँ केन्द्र में उसका दबदबा बना हुआ है वहीं पर राज्यों में भी वह अपना दबदबा बनाये हुए है। चाहे केन्द्र मेें भाजपा को पूर्ण बहुमत हासिल है। लेकिन उसके बावजूद उसका गठबंधन क्षेत्रीय पार्टियों के साथ चल रहा है।

अकाली-भाजपा गठबंधन कायम रहेगा?
शिरोमणी अकाली दल द्वारा समय-समय पर यह ब्यान दिया जाता रहा है कि केन्द्र में स्थापित भाजपा के साथ उसका नाखून मांस का रिश्ता कायम है। भाजपा को शिरोमणी अकाली द्वारा बिना शर्त के साथ अपना समर्थन दिया हुआ है। दल के अध्यक्ष स. सुखबीर सिंह बादल इस बात को कई बार जाहिर कर चुके हैं कि उनका गठबंधन हमेशा के लिए कायम रहेगा। लेकिन बदलते हुए समय में अब इस गठबंधन पर शंका के बादल नजर आने लगे हैं। भाजपा द्वारा जिस तरह से शिरोमणी अकाली दल को आँखें दिखाई जा रही है। उसको देखते हुए लगने लगा कि यह गठबंधन शायद अब और ज्यादा समय तक नहीं चल पायेगा।
बादल दंपति आये विरोधियों के निशाने पर
शिरोमणी अकाली दल के अध्यक्ष स. सुखबीर सिंह बादल व पूर्व केन्द्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल आज कल विरोधियों के निशाने पर आये हुए हैं। विरोधियों द्वारा संसद में कृषि बिल के पास होने का ठीकरा उनके सिर फोड़ा जा रहा है। जबकि श्रीमति हरसिमरत कौर बादल ने बिल के विरोध में खड़े होते हुए जहाँ पर अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया वहीं पर वह किासनों के साथ जा खड़ी हुई। यह बात जैसे ही विरोधी पार्टियों को पता लगी तो उन्होंने बादल दंपति को घेरना शुरू कर दिया। विरोधी दलों का मानना है कि बादल दंपति कृषि बिल के मुददे पर राजनीति कर रहा है। जबकि अकाली दल के अध्यक्ष साफ कह चुके हैं कि किसानों के हकों को कुचलने वालों के साथ वह कभी खड़े नहीं हो सकते। फिर चाहे केन्द्र की सरकार ही क्यों ना हो। केन्द्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए बादल दंपति ने अलग-अलग प्रदेशों की पार्टियों से संपर्क बनाना शुरू कर दिया है और इसके लिए उन्होंने राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से मुलाकात करके इस बिल पर हस्ताक्षर ना करने के लिए भी अपील की है।

क्या भाजपा पंजाब में अकेले लड़ेगी चुनाव?
पंजाब में 2022 में आने वाले विधानसभा चुनावों की सुगबगाहट को देखते हुए जहाँ पर सभी पार्टियाँ अपने-अपने स्तर पर लोगों से संपर्क बनाने मेें लगी हुई है। वहीं पर वर्षों से शिरोमणी अकाली दल व भाजपा का गठबंधन आने वाले विधासभा चुनावों में अपने-अपने स्तर पर लडने का मन बना रहा है। शिरोमणी अकाली दल का मानना है कि वह कब तक अपने बड़े भाई का धर्म निभाता रहेगा। जबकि पंजाब भाजपा के स्थानीय नेता मानते हैं कि उनको विधानसभा के चुनाव अपने स्तर पर लडने चाहिए। ख़बर यह भी आ रही है कि अमृतसर से कांग्रेसी विधायक श्री नवजोत सिंह सिद्धू भी शायद भाजपा में फिर से शामिल हो जाये और भाजपा उनको प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर लोगों के सामने पेश करे। सूत्रों की माने तो सिद्धू की नाराजगी शिरोमणी अकाली दल के अध्यक्ष स. सुखबीर सिंह बादल से थी। अब जब अकाली दल केन्द्रीय मंत्री-मंडल से बाहर हो चुका है तो सिद्धू को लगने लगा है कि वह पंजाब की बागडोर संभाल सकते हैं। उधर आम आदमी पार्टी की निगाहें पहले से ही सिद्धू पर हैं सिद्धू किसकी टीम से बैटिंग करेंगे यह समय ही बतायेगा।
भाजपा का पंजाब विरोधी रवैया सामने आया
नैशनल अकाली दल के अध्यक्ष स. परमजीत सिंह पम्मा ने केन्द्र की भाजपा सरकार को पंजाब और पंजाबियत का विरोधी बताया। स. पम्मा ने कहा कि अब तक तो कांग्रेस सरकार ही सिक्खों के साथ धक्का करती थी। लेकिन भाजपा ने भी कांग्रेस के रास्ते पर चलते हुए अब सिक्ख विरोधी रवैया अपना लिया है। केन्द्र सरकार द्वारा जिस तरह से तानाशाही रवैया अपनाकर संसद में बिल को पास किया गया है उसको देखते हुए लगने लगा है कि अब वह पंजाब के लोगों को जीते जी ही मार देगी। एक तरफ वह पंजाब के किसानी जीवन को खत्म करने पर आ गई है। दूसरी तरफ जिस तरह से जम्मू-कश्मीर में उसके द्वारा पंजाबी भाषा को सरकारी सूची से बाहर निकाल दिया है। उसको देखकर लगने लगा है कि सच में केन्द्र की भाजपा सरकार पंजाब और पंजाबियत विरोधी सरकार है।

वहीं सिख ब्रदर्सहुड के राष्ट्रीय अध्यक्ष बख्शी परमजीत सिंह ने संसार भर के पंजाबियों से अपील की है कि भारत सरकार की किसान विरोधी नीतियों के विरोध में एकजुट हो कर किसानों के हक के लिए आवाज़ बुलंद करें।अगर ऐसा नहीं किया तो यह समूचे पंजाबियों और सिखों को बर्बाद कर देगा।

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