जम्मू कश्मीर इलाके में महाराजा रणजीत सिंह की अगुवाई में 50
वर्ष खालसा राज कायम रहा। लाखों पंजाबियों ने इस क्षेत्र की
खुशहाली, तरक्की और विदेशी हमलावरों से सुरक्षा के लिए
अपना अहम योगदान दिया इसीलिए जम्मू कश्मीर की रियासत में पंजाबी भाषा को विशेष
सम्मान दिया गया यहां तक कि केवल सिख ही नहीं बल्कि बड़ी गिनती में मुस्लिम समुदाय
के लोग भी पंजाबी पढ़ने और बोलने लगे पर केन्द्र में बैठी मोदी सरकार ने वहां के
पंजाबियों से बेइन्साफी करते हुए राज भाषा बिल 2020 में
संशोधन करते समय पंजाबी को बाहर निकाल दिया जबकि पंजाबी की उप-बोली डोगरी को शामिल
कर लिया जो कि मूल भाषा से बहुत ही बेइन्साफी, खुले तौर
पर भेदभाव और अल्पसंख्यकों के भाषाई हक को कुचलने के समान है जिसने जम्मू कश्मीर
क्षेत्र सहित देश-विदेश में बसने वाले पंजाबियों के दिलों को आघात पहुंचाया है।
सिख ब्रदर्सहुड इंटरनैशनल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बख्शी परमजीत सिंह का मानना है कि केन्द्र में सरकार भले ही किसी भी पार्टी की आ जाये पर ना जाने कयों सभी पंजाबियों और खासकर सिखों के साथ सौतेला व्यवहार ही करते हैं उनके बनते हक देना तो दूर उल्टा जो मान सम्मान उन्हें मिल रहा होता है उसे भी छीनने के प्रयास ही किये जाते हैं। इसका ताजा उदाहरण जम्मू कश्मीर में देखने को मिला है वहां पिछले कई वर्षों से पंजाबी भाषा को लोग पढ़ते आ रहे थे पर एकाएक सरकार ने उसे बाहर करने का ऐलान कर दिया। उनका कहना है कि सरकार को यह सोचना चाहिए कि आज अगर पड़ोसी मुल्क को खौफ है तो जम्मू कश्मीर में डटे हुए पंजाबियों से है क्योंकि अन्य गैर मुस्लिम समुदाय के ज्यादातर लोग तो बहुत पहले वहां से पलायन कर गये पर पंजाबियों ने समय-समय पर आतंकवाद का डटकर मुकाबला किया और मुंहतोड़ जवाब भी देते आए हैं।
सिखों के नौंवे गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने कश्मीरी पंडितों द्वारा लगाई गई गुहार के बाद अपनी शहादत दी और आज उसी के कारण हिन्दू धर्म जीवित है पर यह समझ से परे है कि उन्ही गुरू के सिखों के साथ अन्याय क्यों हो रहा है। उनका कहना है कि सरकारों को इस विषय पर ध्यान केन्द्रित करना होगा। आज अफगानिस्तान से सिख पूरी तरह से पलायन कर भारत या अन्य देशों में जाकर बस रहे हैं कहीं ऐसा ना हो कि जम्मू कश्मीर से सिख और पंजाबी इसी तरह पलायन करने लगे और अगर ऐसा हुआ तो पड़ोसी मुल्क को जम्मू कश्मीर पर कब्जा करने में ज्यादा देर नहीं लगेगी।
इस विषय को दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं स्त्री अकाली दल की दिल्ली इकाई की अध्यक्षा बीबी रणजीत कौर ने उठाते हुए केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर पंजाबी भाषा को बाहर करने के फैसले पर पुनः विचार करने को कहा ।
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के उपाध्यक्ष एवं भाजपा दिल्ली प्रदेश के उपाध्यक्ष कुलवंत सिंह बाठ ने भी प्रधानमंत्री से मांग की है कि पंजाबी को सरकारी भाषा के तौर पर कायम रखा जाये क्योंकि राज्य की आधी से ज्यादा आबादी पंजाबी बोलने वालों की है और अब तो वहां के बच्चे पंजाबी भाषा में आइ.ए.एस, आइ.पी.एस जैसी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं ऐसे में भाषा को बाहर करना उनके साथ अन्याय होगा। पंजाबी प्रोमोशन काउंसिल जो कि निरंतर पंजाबियत की सेवा करती आ रही है और उनकी बदौलत आज दिल्ली के तिहाड़ जेल में कैदियों को पंजाबी भाषा सिखाई जाती है।
जम्मू कश्मीर के भी कुछ ऐसे इलाके हैं जहां लोग पंजाबी सीखने के इच्छुक हैं वहां काउंसिल द्वारा अपने खर्च पर टीचर भेजकर, उन्हें किताबें मुहैया करवाकर पंजाबी भाषा का ज्ञान दिया जाता है पर सरकार के इस फैसले से उन्हें काफी दुख पहुंचा है और काउंसिल के अध्यक्ष जसवंत सिंह बोबी ने देश के महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित अन्य संबंधित महकमों को पत्र लिखकर इस पर पुनःविचार करने को कहा है।
अतः देखना होगा कि देश-विदेश से पंजाबी भाषा को प्यार करने वालों
की मांग पर मोदी सरकार कितना गौर फरमाती है पर एक बात तय है कि जम्मू कश्मीर में
पंजाबियों की अनदेखी और पंजाबी भाषा से किया गया सौतेला व्यवहार मोदी सरकार को
भारी पड़ सकता है।
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