हाईकमान की नीतियों मंे बदलाव के बाद सिख भाजपा से जुड़ सकते हैं
देश की सभी राष्ट्रीय पार्टियाँ अपने साथ अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को जोडना चाहती है। इस दौड़ में चाहे कांग्रेस, भाजपा, राष्ट्रीय जनता दल, आम आदमी पार्टी या फिर कोई और क्षेत्रीय पार्टी ही क्यों ना हो। सभी की इच्छा होती है कि अगर धर्म निरपक्षता का मुखौटा पहनना है तो अपने साथ अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को जोड़ना होगा। इससे पूरी दुनिया में उस पार्टी की छवि साफ-सुथरी बनी रहती है दूसरा यह संदेश जाता है कि कि वह भारत में हर वर्ग को अपने साथ जोड़े हुए है। उनकी पार्टी में धर्म और भाषा के नाम पर कोई भेद-भाव नहीं किया जाता।
केन्द्र में ज्यादातर समय कांग्रेस की सरकारें रही। कांग्रेस ने जहाँ राष्ट्रीय स्तर पर अपने साथ सिक्खों को जोड़े रखा वहीं उसने स्थानीय स्तर पर सिक्खों को प्रतिनिधित्वता प्रदान की। लेकिन कांग्रेस के माथे पर 1984 का कलंक ऐसा लगा कि आज कांग्रेस पार्टी के साथ सिक्खों ने एक तरह से किनारा ही कर लिया है। ऐसे समय में भाजपा को लगा कि अब सिक्ख समुदाय के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है तो उन्होंने सिक्खों को अपने साथ जोडने की कवायद आरंभ कर दी।
भाजपा सिखों का दिल क्यांे नहीं जीत पाई
आजादी के बाद से ही सिख जनसंघ (मौजूदा भाजपा) के साथ क्यों नहीं
जुड़े क्योंकि भाजपा सिखों को उनका बनता मान सम्मान नहीं दे पाई हालांकि कांग्रेस
पार्टी ने भी आजादी से पहले सिखों के साथ किए गए वायदे पूरे नहीं किये, पंजाब के कई टुकेड़े केवल सिखों को कमजोर करने के लिए किये गये पर
बावजूद इसके देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री जैसे अनेक महत्पवूर्ण पद कांग्रेस पार्टी ने देकर सिखों
के दिल जीतने में कामयाबी हासिल की पर भाजपा ने पंजाब मे भी एक बार दया सिंह सोढी
को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के बाद हमेशा गैर सिखों को ही तवज्जो दी। केन्द्र यां
राज्यों की सरकारों में भी सिखों को कोई खास महत्व नहीं दिया गया, खानापूर्ति के लिए अगर किसी सिख चेहरे को स्थान दिया भी तो उसे जिसकी
सिख समुदाय में कोई खास पकड़ नहीं रही।
आपरेशन ब्लयू स्टार की आड़ में सिखों के पवित्र धार्मिक स्थल श्री दरबार साहिब पर हमले के लिए भी सिख समुदाय कांग्रेस के साथ भाजपा को भी दोषी मानता है क्योंकि सूत्र बताते हैं कि भाजपा नेताओं ने कांग्रेस सरकार पर ऐसा करने के लिए दबाव बनाया था। सिखों के अनेक मसले आज भी लटकते आ रहे हैं पर भाजपा की सरकारें आने पर भी वह हल नहीं हो पाए। सिखों की भाजपा से ना जुड़ पाने का यही कारण रहा है।
दिल्ली में स्थानीय स्तर पर सिक्खों की गिनती शुन्य
दिल्ली प्रदेश भाजपा में अनेकों अध्यक्ष आये और गये। लेकिन किसी
ने भी सही अर्थों में या फिर अगर यह कहा जाये कि जमीनी स्तर पर सिक्खों को पार्टी
के साथ जोडने का कार्य नहीं किया तो इस बात में कोई आश्चर्य नहीं होता। कहने को तो
भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने अपने मंत्री मंडल में श्री हरदीप पुरी को मंत्री पद
भी दिया हुआ है। लेकिन हरदीप पुरी सिक्ख समुदाय के प्रमाणित नेता नहीं है। खास तौर
पर दिल्ली के आम सिक्खों में उनकी कोई ज्यादा पैठ भी नहीं है। आम सिक्ख तो उनको
हवाई नेता ही मानता है। जिसको केन्द्रीय नेतृत्व ने जबरदस्ती सिक्खों पर लाद दिया
है। इसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा ने सिक्खों को कोई पूरी तरह से प्रतिनिधता
नहीं दी है। दिखावे के लिए नई दिल्ली से स. आर.पी.सिंह कोहली को महासचिव का पद
दिया हुआ है। इसी तरह से दिल्ली प्रदेश में स. कुलवंत सिंह बाठ को उपाध्यक्ष पद पर
बिठाया हुआ है। केन्द्रीय नेतृत्व ने बस इसी से समझ लिया कि अब दिल्ली में सिक्ख
भाजपा के साथ पूरी तरह से जुड़ जायेंगे।
पार्टी के ऊपरी स्तर के नेता तो शायद यह नहीं चाहते कि दिल्ली के सिक्खों की मंडल स्तर पर सम्मानित ओहदे देकर उनको जोड़ा जाये। भाजपा दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष को जब भी बदला जाता है तो सिर्फ अखबारों में सुर्खियाँ बटोरने के लिए यह कहा जाता है कि भाजपा सिक्खों को भी मोर्चो, मंडलो व जिला स्तर पर ओहदे देगी। लेकिन बातें सिर्फ हवाई किला ही साबित होती है।
प्रदेश में पद पाने की हौड़ में सिख नेता
दिल्ली भाजपा के नए अध्यक्ष बनने के बाद अब भाजपा से जड़े सिख
नेताओं में प्रदेश मंे पद पाने की हौड़ लगी हुई है। इनके द्वारा सिखों को पार्टी से
जोड़ने की कवायद भी शुरु की गई है। सभी अपने अपने दम पर ज्यादा से ज्यादा सिखों को
पार्टी की विचारधारा से जोड़ने के प्रयास कर रहे हैं। इसमें भाजपा के राष्ट्रीय
मंत्री आर पी सिंह द्वारा सिख मसलों को पूरे जोर शोर से उठाते हुए सिखों में
विश्वास बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं। सिख प्रकोष्ठ भी आर पी का साथ देता
दिखाई दे रहा है। आर पी सिंह जो कि एजूकेटेड और तर्जुबेदार के साथ धर्म का भी खासा
ज्ञान रखते हैं और राष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी नेताओं में पकड़ हैं। दूसरा नाम सः
कुलवंत सिंह बाठ का है जो कि प्रदेष में उपाध्यक्ष के पद पर हैं और दिल्ली सिख
गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी में भी बतौर उपाध्यक्ष सेवा निभा रहे हैं इसके साथ ही
गुरु हरिकृष्ण पब्लिक स्कूल लोनी रोड के चेयरमैन होने के कारण यमुनापार में उनकी
सिख समुदाय में अच्छी पकड़ है। उनकी धर्म पत्नी निगम पार्षद भी हैं। सः बाठ समय समय
पर सिख मसलों पर आवाज उठाते आए हैं और मौजूदा समय में भी पंजाबी भाषा को बनता
सम्मान दिलाने के लिए मुहिम चला रहे हैं। इसके अतिरिक्त उतरी दिल्ली के पूर्व मेयर
अवतार सिंह हैं जो कि पिछले लम्बे समय से पार्टी से जुड़े हैं। पूर्व प्रधानमंत्री
अटल बिहारी वाजपाई के साथ राम मन्दिर मुहिम में जेल काटने के बाद से पूरी तरह से
पार्टी को समर्पित हैं। सिख समुदाय में पकड़ बनाने के प्रयास निरन्तर उनके द्वारा
किये जा रहे हैं। लाकडाउन पीरीयड की शुरुआत से ही मानवता सेवा में पूरा परिवार
उनका लगा रहा जिसके चलते पूरे परिवार को कोरोना भी हुआ पर बावजूद इसके कोरोना को
मात देकर फिर से सेवा में जुट गये। पुरानी दिल्ली के अनेक गुरुद्वारा साहिबान में
निरन्तर सेवा उनके द्वारा निभाई जाती है। मेयर रहते पहली बार मेयर हाउस में गुरु
नानक देव जी का प्रकाश पर्व मनाया गया था। इसके इलावा इस बार युवा चेहरे भी प्रदेष
में जगह बनाने के लिए प्रयत्नशील हैं।
अब भाजपा हाईकमान और प्रदेष अध्यक्ष आदेष गुप्ता को देखना होगा कि किस सिख नेता को वह इस पद के लिए योग्य समझते हैं।
Article Written By, Mr.Sudeep Singh, Honorary Media Advisor,DSGMC
http://sikhsindia.blogspot.com/2020/07/mrsudeep-singhs-article.html
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